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विनय में स्थिर करें

विनय में स्थिर करें

विणए ठविज्ज अप्पाणं, इच्छंतो हियमप्पणो

आत्महितैषी साधक अपने को विनय में स्थिर करे

किसी बैलगाड़ी या तॉंगे में बैठने वाला व्यक्ति स्थिर रहने का चाहे कितना भी प्रयास क्यों न करे, उसका बदन हिलता ही रहेगा| इसके विपरीत जमीन पर अथवा किसी शिला पर बैठने वाले व्यक्ति पायेंगे; कि उनका शरीर स्थिर है| शरीर की अस्थिरता या स्थिरता उसके आधार पर अवलम्बित है|

यही बात अपनी आत्मा के विषय में भी समझी जा सकती है| आत्मा की अस्थिरता या स्थिरता भी उसके आधार पर अवलम्बित है| यदि हम उसे चञ्चल क्षणिक सुख देनेवाले विषयों पर – कषायों पर – दुर्व्यसनों पर – दुर्मनोवृत्तियों पर प्रतिष्ठित करते हैं; तो अवश्य ही वह अस्थिर रहेगी|

इसके विपरीत यदि हम उसे शास्त्रों में, धर्मकथाओं में और सद्गुणों में प्रतिष्ठित करते हैं; तो वह स्थिर रहेगी| जैसे सभी बुरी मनोवृत्तियों का मूल अभिमान है, वैसे सभी अच्छी मनोवृत्तियों का एवं सद्गुणों का मूल विनय है|

अतःज्ञानी कहते हैं कि जो साधक आत्मकल्याण के अभिलाषी हैं, उन्हें चाहिये कि वे अपनी आत्मा को विनय में स्थिर करें|

- उत्तराध्ययन सूत्र 1/6

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