होइ सुदुल्लहा तेसिं
जो आत्माएँ बहुत अधिक कर्मों से लिप्त हैं, उनके लिए बोधि अत्यन्त दुर्लभ है
आठ सतहों वाली कपड़े की पट्टी जिसकी आँखों पर बँधी हो, वह कुछ नहीं देख सकता| ठीक उसी प्रकार अष्ट कर्मों का आवरण जिस जीव पर लगा हो, वह सम्यग्दर्शन नहीं कर सकता| यह आवरण जितना द्दढ़ होगा – जितना प्रगाढ़ होगा, उतना ही जीव को वह सम्यग्दर्शन से अधिक वंचित रखेगा|
कर्मों का फल भोगते समय जीव दुःखों की तीव्रता से अनुभूति करता रहता है और क्रन्दन करता रहता है| ऐसी अवस्था में सम्यक्चरित्र या सदाचार के पालन की ओर उसका ध्यान ही नहीं जा सकता|
इस प्रकार कर्मों का लेप जीव को सम्यक्चरित्र से, सम्यग्दर्शन से और सम्यग्ज्ञान से दूर रखता है और मोक्षगति में अत्यन्त बाधक बनता है|
बोधिरत्न उसके लिए अत्यन्त दुर्लभ हो जाता है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 8/15
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