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बोलने की विधि

बोलने की विधि

नापुट्ठो वागरे किं चि,
पुट्ठो, वा नालियं वए

बिना पूछे कुछ भी नहीं बोलना चाहिये और पूछे जाने पर भी असत्य नहीं बोलना चाहिये

अभिमान ही ज्ञान का अजीर्ण है| जिन्हें ज्ञान के साथ अभिमान भी होता है, समझना चाहिये कि उनको अभी ज्ञान पचा नहीं है|

ऐसे लोग बिना पूछे भी बोलते रहते हैं और सन्मान पाने की आशा में अपने ज्ञान का प्रदर्शन किया करते हैं| श्रोता कभी शब्दों की ओर विशेष ध्यान नहीं देते| वे वक्ता के हृदय को देखते हैं; इसलिए आसानी से समझ जाते हैं कि कौनसा वक्ता केवल अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने पर तुला हुआ है और कौनसा वक्ता वास्तव में हमें धर्माचरण की प्रेरणा देने के लिए बोल रहा है| बिना पूछे बोलने में तो प्रायः ज्ञान के प्रदर्शन की ही भावना छिपी रहती है; इसलिए बिना पूछे कभी नहीं बोलना चाहिये|

पूछा जाने पर भी अलीक (झूठ) नहीं बोलना चाहिये|

अयथार्थ वचनों से किसी की जिज्ञासा शान्त करना अनुचित है| क्यों कि यदि ऐसा किया जाता है तो जब भी श्रोता को कहीं से यथार्थ ज्ञान प्राप्त होगा, उसका विश्‍वास वक्ता से उठ जायेगा|

- उत्तराध्ययन सूत्र 1/14

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