मेत्तिं भूएसु कप्पए
प्राणियों से मैत्री करो
आनन्द वैर में नहीं, मित्रता में निवास करता है | यदि हम दूसरों के सामने मित्रता का हाथ बढ़ाते हैं; तो दूसरे भी हमारे सामने मित्रता का हाथ अवश्य बढ़ायेंगे| मित्र बनाने के बाद मित्रों के साथ यदि हम मैत्रीपूर्ण व्यवहार करते रहेंगे; तो दूसरे भी हमारे साथ वैसा ही व्यवहार करेंगे| इस प्रकार पारस्परिक मैत्री दिन दूनी – रात चौगुनी बढ़ती ही रहेगी|
ज्यों-ज्यों मित्र बढ़ते जायेंगे और मित्रता प्रगाढ़ होती जायेगी, त्यों-त्यों परस्पर सहयोग और आनन्द में भी क्रमशः वृद्धि होती रहेगी|
इसीलिए हितैषी महान वीतराग देवों ने आदेश दिया है कि समस्त प्राणियों से मैत्री करो|
- उत्तराध्ययन सूत्र 6/2
In friendship we should not have misunderstanding and arguments