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अवक्तव्य

अवक्तव्य

जं छं तं न वत्तव्वं

जो गोपनीय हो उसे न कहें

जो गोपनीय बात हो, उसे गुप्त ही रखनी चाहिये| समय या योग्य अवसर आने पर ही उसका प्रकाशन उपयुक्त होता है|

उपयुक्त समय से पहले रहस्य प्रकट कर देने पर बड़े अनर्थ हो जाते हैं – कभी-कभी | जो व्यक्ति बहुत अधिक बोला करते हैं, उनके मुँह से रहस्यमय बातें भी प्रकट हो जाती हैं; इसलिए ऐसे व्यक्तियों को गोपनीय बातें नहीं बतानी चाहिये|

सज्जनों के प्रयासों का अनुमान उनके फलों कों (परिणामों को) देखकर ही लगाया जाता है, क्यों कि वे सिद्धि से पहले साधनों का कभी विज्ञापन नहीं करते| वे क्या कर चुके हैं – यही लोग जान पाते हैं; किन्तु क्या कर रहे हैं और क्या करने वाले हैं – यह किसी को मालूम नहीं होता|

जो लोग काम करने से पहले ही उसका श्रेय लूटना चाहते हैं, वे बढ़-बढ़ कर बातें बनाते हैं – अपने मुँह से अपनी तारीफ भी कर जाते हैं| सज्जन ऐसा नहीं करते|

नीतिकारों ने कहा है कि छः कानों में जो बात चली जाती है, वह फूट जाती है| इसका तात्पर्य यह है कि गोपनीय बात तीन व्यक्तियों के कानों तक नहीं पहुँचनी चाहिये; अन्यथा कार्यसिद्धि में बाधा पड़ेगी| अतः गोपनीय हो उसे न कहें|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/6/26

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