अत्तहियं खु दुहेण लब्भइ
आत्महित का अवसर मुश्किल से मिलता है
जिन व्यक्तियों की संगति में मनुष्य रहता है, वैसा ही बन जाता है| दुर्जनों की संख्या अधिक होने से वह दुर्जनता के गुण शीघ्र अपनाता है | इसके विपरीत सज्जनों की संख्या कम होने से उसे सद्सङ्गति का अवसर बहुत कठिनाई से ही कभी मिल पाता है|
सज्जनों की अपेक्षा साधुओं की संख्या और भी कम है; इसलिए साधुओं की संगति का – उनके उपदेश सुनने का अवसर बहुत कम मिलता है| इस अवसर का भी उपयोग बुद्धिमान व्यक्ति ही करते हैं, मूर्ख या अज्ञ नहीं|
साधुसंगति से ही आत्मकल्याण का मार्ग स्पष्ट होता है| प्रत्येक व्यक्ति को आत्मकल्याण के अवसर से लाभ उठाना चाहिये|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/2/2/30
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