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आत्महित का अवसर

आत्महित का अवसर

अत्तहियं खु दुहेण लब्भइ

आत्महित का अवसर मुश्किल से मिलता है

इस संसार में पत्थर बहुत हैं, हीरे कम-कुत्ते बहुत हैं, हाथी कम-सियार बहुत हैं, सिंह कम – नीम के पेड़ बहुत हैं, आम के कम – कङ्कर बहुत हैं, मोती कम – दुर्जन बहुत हैं, सज्जन कम|

जिन व्यक्तियों की संगति में मनुष्य रहता है, वैसा ही बन जाता है| दुर्जनों की संख्या अधिक होने से वह दुर्जनता के गुण शीघ्र अपनाता है | इसके विपरीत सज्जनों की संख्या कम होने से उसे सद्सङ्गति का अवसर बहुत कठिनाई से ही कभी मिल पाता है|

सज्जनों की अपेक्षा साधुओं की संख्या और भी कम है; इसलिए साधुओं की संगति का – उनके उपदेश सुनने का अवसर बहुत कम मिलता है| इस अवसर का भी उपयोग बुद्धिमान व्यक्ति ही करते हैं, मूर्ख या अज्ञ नहीं|

साधुसंगति से ही आत्मकल्याण का मार्ग स्पष्ट होता है| प्रत्येक व्यक्ति को आत्मकल्याण के अवसर से लाभ उठाना चाहिये|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/2/2/30

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