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विद्या और आचरण

विद्या और आचरण

आहसु विज्जाचरणं पमोक्खं

विद्या और आचरण से ही मोक्ष बताया गया है

जिस प्रकार चलने के लिए चक्षु और चरण – दोनों आवश्यक हैं, उसी प्रकार मोक्ष की प्राप्ति के लिए भी ज्ञान और क्रिया दोनों आवश्यक हैं|

क्रिया के बिना ज्ञान पंगु है और ज्ञान के बिना क्रिया अन्धी है | पंगु चलने-फिरने में असमर्थ है, किन्तु वह देख सकता है| इसके विपरीत अन्धा चल तो सकता है, परन्तु वह गलत दिशा में गलत स्थान पर जा सकता है| अतः ज्ञानी को आचरण की उतनी ही आवश्यकता है, जितनी सदाचारी को ज्ञान की|

सदाचार ज्ञान का फल है| यदि हमें सन्मार्ग का समुचित ज्ञान हो जाये; तो उस पर विश्‍वास भी पैदा हो जायेगा| फिर ज्यों ही एक बार विश्‍वास पैदा हुआ कि धीरे-धीरे उस के अनुसार आचरण भी होने लगेगा|

यदि ज्ञान के बाद आचरण न हो; तो ज्ञानी होने न होने के बराबर ही व्यर्थ होगा| यही कारण है कि मोक्षलक्ष्मी रूपी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयत्नशील साधकों को महापुरुषोंने ने ज्ञान और क्रिया का महत्त्व बताते हुए कहा है कि विद्या और आचरण से ही प्राणियों का मोक्ष सम्भव है|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/12/11

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