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बालप्रज्ञ

बालप्रज्ञ

अं जणं खिंसइ बालपे

बालप्रज्ञ (अज्ञ) दूसरे मनुष्यों को चिढ़ाता है

स्वयं रोना आर्त्तध्यान है| दूसरों को रुलाना रौद्रध्यान है| संसार के अधिकांश जीवों का अधिकांश समय रोने और रुलाने में ही नष्ट होता है|

कुछ व्यक्ति ऐसे होते हैं, जो दूसरों को आकुल-व्याकुल देखकर प्रसन्न होते हैं- दूसरों को सताने में आनन्द का अनुभव करते हैं| ऐसे व्यक्तियों से भला यह आशा कैसे की जा सकती है कि वे दूसरों के दुःख दूर करने या मिटाने का प्रयास करेंगे?

रोना तो बुरा है ही, रुलाना उससे भी अधिक बुरा है| वैसे ही आर्त्तध्यान तो बुरा है ही, रौद्रध्यान उससे भी अधिक बुरा है| हमें इन दोनों ध्यानों का परित्याग करके धर्मध्यान एवं शुक्लध्यान का अवलम्बन लेना चाहिये|

अपने ज्ञान का जिसे अभिमान होता है, वही दूसरों को अपने से तुच्छ समझ लेता है| मिथ्याभिमान के कारण वह दूसरों की हँसी भी उड़ाता है और दूसरों को चिढ़ाता भी है| ज्ञानियों के अनुसार ऐसे व्यक्ति बालप्रज्ञ हैं – अज्ञ हैं| ज्ञानी साधक न दूसरों से चिढ़ता है और न दूसरों को चिढ़ाता है|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/13/14

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