वुच्चमाणो न संजले
साधक को कोई यदि दुर्वचन कहे; तो भी वह उस पर क्रोध न करे
परन्तु कुछ शिष्य ऐसे होते हैं जो गुरुदेव द्वारा बताई गयी भूलों से नाराज होते हैं| यदि वे कभी डॉंट दें-फटकार दें तो वे उसमें अपना अपमान समझते हैं| मन-ही-मन जलते रहते हैं और समझने लगते हैं कि कहॉं सुखी गृहस्थ-जीवन को छोड़ कर इस संयमी साधुजीवन की झंझट में आ फँसे | इससे तो वही पुराना जीवन अच्छा था| ऐसे शिष्यों का जीवन कभी सुधर नहीं सकता|
इसीलिए कहा गया है कि डॉंटा जाने पर भी विनीत शिष्य शान्त रहे, क्रोध न करे|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/6/31
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