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क्रोध न करें

क्रोध न करें

वुच्चमाणो न संजले

साधक को कोई यदि दुर्वचन कहे; तो भी वह उस पर क्रोध न करे

मनुष्य से जाने-अनजाने भूलें होती ही रहती हैं| अपनी भूलें स्वयं अपने को मालूम नहीं होतीं; इसीलिए “गुरुदेव” की जीवन में आवश्यकता होती है| वे दयावश हमें सुधारने के लिए हमारी भूलें बताते हैं| यदि हम उनके निर्देश के अनुसार विनयपूर्वक एक-एक भूल को सुधारते रहें; तो क्रमशः हमारा जीवन शुद्ध से शुद्धतर होता चला जाये| विनीत साधक शिष्यों से गुरुदेव ऐसी ही अपेक्षा रखते हैं|

परन्तु कुछ शिष्य ऐसे होते हैं जो गुरुदेव द्वारा बताई गयी भूलों से नाराज होते हैं| यदि वे कभी डॉंट दें-फटकार दें तो वे उसमें अपना अपमान समझते हैं| मन-ही-मन जलते रहते हैं और समझने लगते हैं कि कहॉं सुखी गृहस्थ-जीवन को छोड़ कर इस संयमी साधुजीवन की झंझट में आ फँसे | इससे तो वही पुराना जीवन अच्छा था| ऐसे शिष्यों का जीवन कभी सुधर नहीं सकता|

इसीलिए कहा गया है कि डॉंटा जाने पर भी विनीत शिष्य शान्त रहे, क्रोध न करे|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/6/31

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