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असंवृत्तों का मोह

असंवृत्तों का मोह

मोहं जंति नरा असंवुडा

असंवृत मनुष्य मोहित हो जाते हैं

जो असंयमी हैं – इन्द्रियों को जो अपने वश में नहीं रख सकते – मन पर जिनका बिल्कुल अधिकार नहीं है; ऐसे लोग विषयों के प्रति शीघ्र आकर्षित हो जाते हैं|

विषयों के प्रति उनका यह आकर्षण उनके कर्त्तव्यपालन में बाधक बनता है – उनकी उन्नति में रोड़े अटकाता है – उनके धर्माचरण में अड़चनें पैदा करता है; परन्तु वे उसे छोड़ने का साहस नहीं कर पाते|

संवर से रहित (असंवृत) व्यक्ति कर्मों का बन्धन करते रहते हैं और उनके कारण संसार में भटकते ही रहते हैं| उनका तब तक उद्धार नहीं हो सकता, जब तक वे संवर का महत्त्व समझ कर अपने आपको संवृत नहीं बना लेते|

संवृत बनाने पर व्यक्ति विषयों के क्षणिक सुख के प्रति आकर्षित नहीं होते| आन्तरिक सुख के सामने बाह्यसुख उन्हें अत्यन्त तुच्छ मालूम होता है| वे असंवृत व्यक्ति ही हैं; जो इन्द्रियों के विषयों को देखते ही उन पर सहसा मोहित हो जाते हैं|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/2/1/20

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