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अनिदानता

अनिदानता

सव्वत्थ भगवया अनियाणया पसत्था

भगवान ने सर्वत्र अनिदानता (निष्कामता) की प्रशंसा की है

कार्य की शुद्धि के लिए निःस्वार्थता अत्यन्त आवश्यक है| स्वार्थ या फल की कामना ही कार्य को कलुषित करती है| फल तो मिलेगा ही; परन्तु हमें फल की आशा रख कर कार्य नहीं करना चाहिये|

यह बात इसलिए आवश्यक है कि कभी-कभी फल देर से मिलता है और कभी-कभी मरने के बाद परलोक में | इस प्रकार अच्छे कार्यों का फल शीघ्र या इसी भव में न मिलने पर लोग निराश हो जाते हैं और कर्त्तव्य से मुँह मोड़ लेते हैं| निष्काम व्यक्ति को फल के लिए आतुरता नहीं होगी,

इसलिए वह बराबर अपने कार्य में संलग्न रहेगा|

दूसरी बात यह है कि दान से परोपकार होता है और यश भी मिलता है; परन्तु जिस दाता की द्रष्टि यश पर होगी, वह जहॉं अधिक यश की आशा होगी, वहीं दान करेगा- भले ही उपकार कम हो, इस प्रकार फल की आशा कार्य की दिशा बदल कर उसे व्यर्थ तक बना सकती है|

यही कारण है कि भगवान ने अनिदानता की प्रशंसा की है|

- स्थानांग सूत्र 6/1

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1 Comment

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  1. Arihant
    दिस॰ 25, 2011 #

    Very nice

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