सव्वत्थ भगवया अनियाणया पसत्था
भगवान ने सर्वत्र अनिदानता (निष्कामता) की प्रशंसा की है
यह बात इसलिए आवश्यक है कि कभी-कभी फल देर से मिलता है और कभी-कभी मरने के बाद परलोक में | इस प्रकार अच्छे कार्यों का फल शीघ्र या इसी भव में न मिलने पर लोग निराश हो जाते हैं और कर्त्तव्य से मुँह मोड़ लेते हैं| निष्काम व्यक्ति को फल के लिए आतुरता नहीं होगी,
इसलिए वह बराबर अपने कार्य में संलग्न रहेगा|
दूसरी बात यह है कि दान से परोपकार होता है और यश भी मिलता है; परन्तु जिस दाता की द्रष्टि यश पर होगी, वह जहॉं अधिक यश की आशा होगी, वहीं दान करेगा- भले ही उपकार कम हो, इस प्रकार फल की आशा कार्य की दिशा बदल कर उसे व्यर्थ तक बना सकती है|
यही कारण है कि भगवान ने अनिदानता की प्रशंसा की है|
- स्थानांग सूत्र 6/1
Very nice