दुविहे धम्मे-सुयधम्मे चेव चरित्तधम्मे चेव
धर्म के दो रूप हैं – श्रुतधर्म (तत्त्वज्ञान) और चारित्रधर्म (नैतिकता)
व्यवहार की यह बात धार्मिक जीवन में भी लागू होती है| शास्त्रों का या गुरुओं के उपदेश का श्रवण करना भी एक कर्त्तव्य है और उस उपदेश के अनुसार कार्य करना भी| इस प्रकार धर्म के दो प्रकार हो जाते हैं- पहला श्रुतधर्म है और दूसरा चारित्र-धर्म|
मन तो सदा विषयों की ओर भागता है; इसलिए मन की बात न सुनकर हमें गुरुओं की बात सुननी चाहिये जिससे कि जीवन पवित्र हो – आचरण शुद्ध हो| इस प्रकार दोनों उपादेय हैं – श्रुतधर्म भी और चारित्रधर्म भी|
- स्थानांग सूत्र 2/1
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