इहलोगे सुचिण्णा कम्मा परलोगे
सुहफल विवाग संजुत्ता भवन्ति
सुहफल विवाग संजुत्ता भवन्ति
इस लोक में किये हुए सत्कर्म परलोक में सुखप्रद होते हैं
बहुत-से व्यक्ति जब देखते हैं कि इस दुनिया में बहुतसे धूर्त, बदमाश, ठग, लुटेरे चोर और चार सौ बीस सुख भोग रहे हैं – एवं साधु-संयमी, सद्गुणी, परोपकारी, धर्मात्मा, सज्जन कष्ट पा रहे हैं – दुःख भोग रहे हैं; तो उनका विश्वास धर्म से हटने लगता है|
ऐसे लोगों को समझाते हुए ज्ञानी कहते हैं कि धर्म का परोपकार का सुफल यदि किसीको इस भव में प्राप्त नहीं हो रहा हो; तो भी उसे निराश नहीं होना चाहिये; क्यों कि धर्म कभी निष्फल नहीं होता| वह इस भव में नहीं फलता तो क्या हुआ ? परभव में अवश्य फलेगा और उस समय कई गुना अधिक फल देगा|
आत्मा अमर है| शरीर के नष्ट हो जाने पर वह परलोक में पैदा होती है और वहॉं इस लोक के सत्कर्म अपना सुफल देते हैं|
- स्थानांग सूत्र 4/2
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