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डरना नहीं चाहिये

डरना नहीं चाहिये

ण भाइयव्वं, भीतं खु भया अइंति लहुयं

डरना नहीं चाहिये| भीत के निकट भय शीघ्र आते हैं

डरता वही है, जो अपराधी है – पापी है – हत्यारा है| चोर और व्यभिचारी भी निरन्तर डरते रहते हैं कि कहीं कभी कोई उन्हें देख न ले – रंगे हाथों चोरी या व्यभिचार करते हुए पकड़ न ले| झूठ बोलनेवाला भी डरता रहता है कि कहीं पोल न खुल जाये, अन्यथा कोई विश्‍वास नहीं करेगा| इनका डरना अच्छा है; क्यों कि यह डर उन्हें पापों से विरक्त करता है|

परन्तु जो निरपराध हैं – निष्पाप हैं – सच्चे हैं – ईमानदार हैं – सज्जन हैं, – वे भी अनिष्ट की आशंका से डरते रहते हैं – दुष्टों के आरोपों से – झूठी निन्दाओं से – परीषहों से – संकटों से डरते रहते हैं| यह बुरी बात है – कायरता का लक्षण है| धैर्य, सहिष्णुता और सौजन्य के साथ निर्भयता भी वीरों का एक आवश्यक गुण है| डरने वालों को लोग दब्बू समझ कर अधिक से अधिक दबाते रहते हैं – अधिक से अधिक डराते रहते हैं| इसीलिए कहा गया है कि भीत (डरे हुए) व्यक्ति के निकट भय शीघ्र आते हैं, इसलिए हमें कभी किसी से डरना नहीं चाहिये|

- प्रश्‍नव्याकरण 2/2

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