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भक्तामर स्तोत्र – श्लोक 2

भक्तामर स्तोत्र   श्लोक 2

यः संस्तुतः सकल-वाङ्मय-तत्त्वबोधा-
दुद्भूत-बुद्धि पटुभिः सुरलोक-नाथैः |
स्तोत्रैर्जगत् त्रितय-चित्त-हरैरुदारै-
स्तोष्ये किलाहमपि तं प्रथमं जिनेन्द्रम् ||2||

अर्थ :

सम्पूर्ण वांङ्मय (शास्त्रों) का ज्ञान प्राप्त करने से जिनकी बुद्धि अत्यन्त प्रखर हो गई है, ऐसे देवेन्द्रों ने तीन लोक के चित्त को आनन्दित करने वाले सुन्दर स्तोत्रों द्वारा प्रभु आदिनाथ की स्तुति की है, उन प्रथम जिनेन्द्र की मैं, (मानतुंग आचार्य, अल्पबुद्धि वाला सामान्य व्यक्ति) भी स्तुति करने का प्रयत्न कर रहा हूँ|

भक्तामर स्तोत्र - यंत्र 2

ऋद्धि : ॐ ह्रीँ अर्हँ णमो ओहिजिणाणं|

मंत्र : ॐ ह्रीँ श्रीँ क्लीँ ब्लूँ नमः|

विधि : इस दुसरे काव्य और मूल मंत्र को सिद्ध करके जाप करने से और २१ दिन तक रिद्धि मंत्र की 1 श्याम माला रोज गिनने पर शत्रु वश होता है तथा सारी बीमारिया विशेष रूप से सिरदर्द दूर होता हैं|

प्रभाव : सारे रोग, विशेष रूप से सिरदर्द दूर होता हैं तथा सारे शत्रु शान्त होते है|


संदर्भ
1. भक्तामर दर्शन – आचार्यदेव श्रीमदविजय राजयशसूरिजी
2. भक्तामर स्तोत्र – दिवाकर प्रकाशन


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3 Comments

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  1. swapnil
    सित॰ 14, 2012 #

    kindly publish all gatha

  2. Tattva Gyan
    सित॰ 14, 2012 #

    Thank You for your comment.
    Adding Bhaktamar Stotra with its meaning is on our roadmap.
    Please subscribe to our blog & we shall notify you when we update this section.

  3. sapna
    मई 22, 2013 #

    nice

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