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मुक्त कौन है ?

मुक्त कौन है ?

विमुत्ता हु ते जणा, जे जणा पारगामिणो

जो जन (कामनाओं को) पार कर गये हैं, वे सचमुच ही मुक्त हैं

बन्धन ! कितना बुरा शब्द है यह ? कौन पसन्द करता है इसे ? कौन फँसना चाहता है इसमें ? कोई नहीं|

इसके विपरीत मुक्ति शब्द है, जो सबके लिए आकर्षक है – वाञ्छनीय है| जो किसी बन्धन में हैं, वे भी मुक्त होने की तीव्र अभिलाषा रखते हैं| जो जेल में हैं, वे बाहर आना चाहते हैं, वे खुले वातावरण में आ कर घूमना चाहते हैं|

ज्ञानी कहते हैं – यह संसार, यह जन्म-जरा-मृत्यु का चक्कर भी एक बन्धन है| कामनाओं के-विषयवासनाओं के जाल में फँसा हुआ व्यक्ति मुक्ति के सुख का आनंद नहीं पा सकता| सच्चा मुक्त वही है, जो कामनाओं से मुक्त है|

जेल से छूटा हुआ व्यक्ति अपराध करके फिर जेल में चला जाता है – कोठरी से बाहर घूमनेवाला व्यक्ति थक कर फिर से कोठरी में घुस जाता है; परन्तु जो जीव संसार से मुक्त हो जाता है, वह फिर कभी संसार में नहीं आता| अब सोचकर निर्णय कीजिये – सच्चा कौन है ?

- आचारांग सूत्र 1/2/2

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