वओ अच्चेति जोव्वणं च
आयु बीत रही है और युवावस्था भी
जब आयुष्य घट रहा है, तब यौवन कैसे कायम रह सकता है ? वह भी धीरे-धीरे समाप्त होता जाता है और अकस्मात् एक दिन बुढ़ापा आ घेरता है| ज्ञानी इस अनिवार्य स्थिति को पहले ही जान लेते हैं और बीतनेवाले प्रत्येक क्षण का सदुपयोग करते हैं| वे धर्माचरण, सेवा, सहायता, परोपकार, सत्संगति, तीर्थयात्रा, शास्त्राध्ययन आदि के द्वारा अपने जीवन को अधिक से अधिक सफल बनाने का प्रयास करते हैं| अधर्म और पाप करने में उन्हें शर्म आती है| विषयों से वे विरक्त हो जाते हैं| उनकी इस विरक्ति का कारण होती है, जीवन का क्षणभंगुरता|
- आचारांग सूत्र 1/2/1
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