वोसिरे सव्वसो कायं, न मे देहे परीसहा
सर्वथा काया को मोह छोड़ता हूँ – मेरी देह पर कोई परीषह जैसे है ही नहीं
ध्यान करते समय मन शरीर को भूल जाता है, मानो वह है ही नहीं| इस प्रकार शरीर पर उसकी जो ममता है वह भी छूट जाती है| उस अवस्था में शरीर पर कोई भी संकट आये – भूख, प्यास, शीत, उष्णता, डांस, मच्छरों का दंश, मार-पीट, वर्षा आदि – वह शान्ति से सह लेता है; क्यों कि शरीर की उपेक्षा कर देने से साधक अपने भीतर ऐसा अनुभव करता है – मानो कोई परीषह है ही नहीं; क्यों कि ध्यान करने से पहले वह सङ्कल्प करता है – ‘‘मैं अपने शरीर की ममता का परित्याग करता हूँ – कोई परीषह मुझे परेशान नहीं कर सकता|’’
- आचारांग सूत्र 1/8/21
No comments yet.
Leave a comment