बहुं पि लद्धुं न निहे
अधिक प्राप्त होने पर भी संग्रह नहीं करना चाहिये
पानी का उपयोग यही है कि उससे अपनी और दूसरों की प्यास बुझाई जाये; उसी प्रकार धन का भी उपयोग यही है कि उससे अपनी और दूसरों की आवश्यकताएँ पूरी की जायें| दूसरों की आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए जो धन दिया जाता है – दूसरों में बॉंटा जाता है, उसे दान कहते हैं| दान से पुण्य का लाभ होता है| परोपकार में धन लगाने से धर्म का लाभ होता है|
ज्ञानियों के अनुसार आत्मकल्याण के लिए यह आवश्यक है कि अधिक धन एकत्र हो जाने पर हम उसका त्याग करते रहें, पर कभी संग्रह न करें|
- आचारांग सूत्र 1/2/5
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