अमुत्तभावा वि य होइ निच्चं
आत्मा आदि अमूर्त्त तत्त्व इन्द्रियग्राह्य नहीं होते और जो अमूर्त्त होते हैं, वे नित्य भी होते हैं
शब्द, रूप, गन्ध, रस और स्पर्शवाले पदार्थ क्रमशः कान, आँख, नाक, जीभ और चमड़ी के द्वारा अनुभव में आते हैं – देखे जाते हैं| प्रत्यक्ष सिर्फ आँखों से ही नहीं होता, प्रत्येक इन्द्रिय से होता है; इसीलिए हम कहते हैं – ‘सुनकर देखो, सूँघकर देखो, चखकर देखो या खा कर देखो और छू कर देखो आदि|’ इन्द्रियों से दिखाई देनेवाले पदार्थ मूर्त्त कहलाते हैं और वे सबके सब क्षणिक होते हैं – नश्वर होते हैं|
इसके विपरीत आत्मा, मोक्ष, ईश्वर (परमात्मा) आदि पदार्थ अमूर्त्त होते हैं| इनका ज्ञान किसी भी इन्द्रिय से सम्भव नहीं है| इनका अनुभव होता है, फिर भी प्रत्यक्ष नहीं होता | ऐसे समस्त पदार्थ नित्य होते हैं – शाश्वत होते हैं|
हमें अनित्य मूर्त्त पदार्थों का नहीं; किन्तु नित्य अमूर्त्त पदार्थों का अवलम्बन लेना चाहिये|
- उत्तराध्ययन सूत्र 14/16
No comments yet.
Leave a comment