हे गौतम! तू क्षण भर के लिए भी प्रमाद मत कर
ढाई हजार वर्ष पहले दी गई वह प्रेरणा शास्त्रों के माध्यम से आज हमें भी अनायास उपलब्ध हो गई है| कितनी महत्त्वपूर्ण है वह!
सावधानी प्रमाद का विलोम शब्द है| जीवन का ऐसा कौनसा क्षेत्र है, जिसमें प्रयाण करते हुए व्यक्ति को सावधानी रखने की आवश्यकता न हो? कोई नहीं|
सदा सर्वत्र सावधान रहनेवाला साधक ही अपनी साधना में सफलता का मुँह देख पाता है अर्थात् अपने लक्ष्य तक – अपनी मंजिल तक पहुँच पाता है|
जो सावधान नहीं रहता, उसे हम प्रमादी कहते हैं| प्रमादी समय का मूल्य नहीं समझता| वह भूल जाता है कि जो समय बीत जाता है, वह लौट कर नहीं आता| प्रमाद एक ऐसा अपराध है, जिसका कुफल तत्काल मिलता है – इसी जीवन में दिखाई देता है| अतः क्षण भर के लिए भी प्रमाद न करने की सलाह दी गई है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 10/34
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