किये हुए को कृत और न किये हुए को अकृत कहना चाहिये
अमुक सार्वजनिक कार्य के लिए कुछ व्यक्ति चन्दा लिखवा देते हैं और फिर अपने साथियों से कहते हैं कि ‘‘मैंने उस कार्य में इतने रुपये दिये और अमुक ने इतने’’ आदि| यद्यपि अभी रुपये दिये नहीं गये है; फिर भी दिये हैं, ऐसा देने से पहले ही दान का श्रेय लेने के लिए जो कहा जाता है, वह अयथार्थ है; इसलिए दत्त को ही दत्त कहना चाहिये और अदत्त को अदत्त|
हॉं, क्रियमाण को कृत कहा जाये तो कोई आपत्ति नहीं| रसोई बन रही हो; फिर भी अतिथि को आमन्त्रित करने के लिए रसोई बन गई है, चलिये’ – ऐसा परमात्मा महावीरस्वामी के वचनानुसार कहा जा सकता है| साड़ी का एक अंश जला हो, फिर भी ‘साड़ी जल गई’ ऐसा व्यवहार में कहते ही हैं; परंतु अकृत को कृत नहीं कहा जाना चाहिये|
- उत्तराध्ययन सूत्र 1/11
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