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कर्मों से कष्ट

कर्मों से कष्ट

सकम्मुणा विप्परियासुवेइ

अपने किये कर्मों से ही व्यक्ति कष्ट पाता है

दुनिया में विषमता है| कोई जन्म ले रहा है, कोई जन्म दे रहा है – कोई जी रहा है, कोई मर रहा है – कोई धन पा रहा है, कोई खो रहा है – कोई जाग रहा है, कोई सो रहा है – कोई हँस रहा है, कोई रो रहा है – कोई सुखी है, कोई दुःखी|

ज्ञानी कहते हैं कि इस भेद का कारण व्यक्ति के द्वारा पूर्वकृत शुभाशुभ कर्म हैं| बहुत-से लोग भ्रमवश ऐसा मान बैठते हैं कि हमें अमुक व्यक्ति सुख-दुःख दे रहा है; परन्तु वस्तुस्थिति इसके विपरीत है| न हमें कोई अन्य व्यक्ति सुख दे सकता है और न दुःख ही| दूसरों को सुखदाता मान कर हम रागी और दुःखदाता मान कर द्वेषी बन जाते हैं| रागद्वेष हमारे जीवन को कलंकित करनेवाले हैं| इन से बचने के लिए यह मानना आवश्यक है कि कोई किसीको कभी सुख-दुःख नहीं दे सकता| यदि कोई व्यक्ति दुःखी है; तो यह उसके अपने ही दुष्कर्मो का फल है; क्यों कि प्रत्येक व्यक्ति अपने कृत कर्मो से ही कष्ट पाता है|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/7/11

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