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हाथी और कुन्थु में जीवन

हाथी और कुन्थु में जीवन

हत्थिस्स य कुन्थुस्स य समे चेव जीवे

हाथी और कुन्थु में समान ही जीव होता है

जीव और अजीव – चेतन और जड़ – स्व और पर दोनों अलग-अलग तत्त्व हैं| एक दूसरे का ये आश्रय लेते हैं, परन्तु एक दूसरे के रूप में परिवर्त्तित नहीं होते| जो जीव है वह जीव ही रहेगा व जो अजीव है, वह अजीव ही रहेगा| Continue reading “हाथी और कुन्थु में जीवन” »

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दुःख परकृत नहीं होता

दुःख परकृत नहीं होता

अत्तकडे दुक्खे, नो परकडे

दुःख स्वकृत होता है, परकृत नहीं

सभी प्राणी अपने-अपने कर्मों का फल भोगते हैं| कोई अन्य प्राणी किसी को सुख-दुःख नहीं दे सकता| यह सिद्धान्त हमें अपने कार्यों के लिए उत्तरदायी बनाता है| Continue reading “दुःख परकृत नहीं होता” »

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