post icon

सो क्या जाने पीर पराई ?

सो क्या जाने पीर पराई ?

जे अज्झत्थं जाणइ, से बहिया जाणइ|
जे बहिया जाणइ, से अज्झत्थं जाणइ|

जो अभ्यन्तर को जानता है, वह बाह्य को जानता है और जो बाह्य को जानता है वह अभ्यन्तर को जानता है

जो अपने सुख-दुःख को समझता है, वही व्यक्ति दूसरों के दुःख-सुख को समझ सकता है- यह एक अनुभूत तथ्य है| जिसे कभी भूखा या प्यासा रहने का अवसर ही न मिला हो, वह कैसे समझ सकता है कि भूख-प्यास में किसी को कितना कष्ट होता है? ऐसा व्यक्ति किसी भूखे-प्यासे का कष्ट दूर करने की दृष्टि से उसे अजल का दान करने के लिए प्रेरित अथवा प्रयत्नशील भी कैसे हो सकता है?

इसी प्रकार दूसरों के सुख-दुःख को जाननेवाला अपने सुख-दुःख को जानता है अर्थात् पराये सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझता है| ऐसी ही व्यक्ति में दयालुता या सहानुभूति का निवास होता है| पड़ौसी के पॉंव में कॉंटा चुभने की बात सुनते ही ऐसा व्यक्ति उसे निकालने के लिए सुई लेकर दौड़ पड़ेगा, मानो स्वयं उसीके पॉंव में कॉंटा चुभा हो! कहा भी है – जा के पैर न फटी बिवाई| सो क्या जाने पीर पराई॥

- आचारांग सूत्र 1/14

Did you like it? Share the knowledge:

Advertisement

No comments yet.

Leave a comment

Leave a Reply

Connect with Facebook

OR