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विचारपूर्वक बोलें

विचारपूर्वक बोलें

अणुवीइभासी से निग्गंथे

जो विचारपूर्वक बोलता है, वही निर्ग्रन्थ है

बोली से या बातचीत से ही पता लगता है कि कौन मूर्ख है और कौन विद्वान| दोनों में अन्तर क्या है?

अन्तर यही है कि मूर्ख पहले बोलता है और फिर विचार करता है; किन्तु विद्वान पहले विचार करता है और फिर बोलता है|

जो निर्ग्रन्थ है – रागद्वेष की ग्रन्थियों से रहित है – ऐसा मुनि मुँह खोलने से पहले कुछ समय के लिए मौन रहकर विचार करता है कि मैं जो कुछ बोल रहा हूँ – बोलनेवाला हूँ, उसका सुननेवाले के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ेगा| अपनी वाणी का अच्छा प्रभाव होगा-ऐसा विश्‍वास होनेपर ही वह बोलता है; अन्यथा मौन ही रहता है|

इस सूक्ति के द्वारा यह प्रकट किया गया है कि घरबार छोड़कर-परिवार छोड़कर प्रव्रजित होने से – साधुवेश स्वीकार करने से ही कोई निर्ग्रन्थ नहीं हो जाता; यदि वह मन में आये सो बोलता रहे| निर्ग्रन्थ तो वे हैं, जो सदा विचारपूर्वक बोलते हैं|

- आचारांग सूत्र 2/3/15/2

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1 Comment

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  1. Dilip Parekh
    अप्रैल 7, 2016 #

    वाणी ऐसी बोलिए मनका आपा खोल /
    ओरनको शीतल करे, आप ही शीतल होय //

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