जो विचारपूर्वक बोलता है, वही निर्ग्रन्थ है
अन्तर यही है कि मूर्ख पहले बोलता है और फिर विचार करता है; किन्तु विद्वान पहले विचार करता है और फिर बोलता है|
जो निर्ग्रन्थ है – रागद्वेष की ग्रन्थियों से रहित है – ऐसा मुनि मुँह खोलने से पहले कुछ समय के लिए मौन रहकर विचार करता है कि मैं जो कुछ बोल रहा हूँ – बोलनेवाला हूँ, उसका सुननेवाले के हृदय पर क्या प्रभाव पड़ेगा| अपनी वाणी का अच्छा प्रभाव होगा-ऐसा विश्वास होनेपर ही वह बोलता है; अन्यथा मौन ही रहता है|
इस सूक्ति के द्वारा यह प्रकट किया गया है कि घरबार छोड़कर-परिवार छोड़कर प्रव्रजित होने से – साधुवेश स्वीकार करने से ही कोई निर्ग्रन्थ नहीं हो जाता; यदि वह मन में आये सो बोलता रहे| निर्ग्रन्थ तो वे हैं, जो सदा विचारपूर्वक बोलते हैं|
- आचारांग सूत्र 2/3/15/2
वाणी ऐसी बोलिए मनका आपा खोल /
ओरनको शीतल करे, आप ही शीतल होय //