लोभमलोभेण दुगंछमाणे
लद्धे कामे नाभिगाहइ
लद्धे कामे नाभिगाहइ
लोभ को अलोभ से तिरस्कृत करनेवाला साधक प्राप्त कामों का भी सेवन नहीं करता
लोभ को अलोभ से तिरस्कृत करनेवाला साधक प्राप्त कामों का भी सेवन नहीं करता
सत्य में धृति करो-स्थिर रहो
अधिक प्राप्त होने पर भी संग्रह नहीं करना चाहिये
मत्त को सब ओर से भय रहता है, किन्तु अप्रमत्त को किसी भी ओर से भय नहीं रहता
शंकाशील व्यक्ति को कभी समाधि नहीं मिलती
आतुर परिताप देते हैं
मैं अकेला हूँ – मेरा कोई नहीं है और मैं भी किसी का नहीं हूँ
सबको जीवन प्रिय है, किसीके प्राणों का अतिपात नहीं चाहिये