एस वीरे पसंसिए, जे बद्धे पडिमोयए
वही वीर प्रशंसनीय बनता है, जो बद्ध को प्रतिमुक्त करता है
जो अपनी शक्ति से दूसरों के कष्ट बढ़ाता है – दूसरों को बन्धन में डालता है, उसकी कौन प्रशंसा करेगा? सर्वत्र उसकी निन्दा ही होगी – यह निश्चित है|
इसके विपरीत जो दूसरों के बन्धन खोलता है उसकी शक्ति सर्वत्र उसे प्रशंसा दिलाती है| भगवान श्री महावीरस्वामी का कथन है – उपदेश है कि यदि आप वीर हैं – आपमें वीरता के गुण हैं; तो दूसरों को बन्धनमुक्त करें !
- आचारांग सूत्र 1/2/5
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