श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तवन
क्युं न हो सुनाइ स्वामी, ऐसा क्या गुन्हा किया रे.
औरोकी सुनाइ जावे, मेरी बारी नाहीं आवे;
तुम बिन कौन मेरा, मुजे क्युं भूला दिया रे.
…क्युं.१
भक्त जनों तार दीया, तारने का काम किया;
बिन भक्तिवाला मोंपे, पक्षपात क्युं कीया रे.
….क्युं.२
राय रंक एक जानो, मेरा तेरा नाहीं मानो;
तरन तारन ऐसा, बिरूद क्युं धार लिया.
…क्युं.३
गुन्हा मेरा बक्ष दीजे, मोंपे अति रहेम कीजे;
पक्का ही भरोंसा तेरा, दिलो में जमा लिया.
…क्युं.४
तुंही एक अंतरजामी, सुनो श्री सुपास स्वामी;
अब तो आशा पूरो मेरी, कहेना सो तो कह दिया.
…क्युं.५
शहेर अंबाला भेटी, प्रभुजी का मुख देखी;
मनुष्य-जनम का ल्हावा, लेना था सो ले लीया.
…क्युं.६
उन्निसो छासठ छबीला, दीपमाला दिन रंगीला;
कहे वीरविजय प्रभु, भक्ति में जमा दीया.
…क्युं.७
यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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