केन्सर की गॉंठ हो, फिर भी ऑपरेशन कीया जाए, तो मरीज़ अच्छा हो जाता है| परंतु जो एक छोटा-सा भी कॉंटा पॉंव में रह जाये, तो इंसान को मार डालता हैं| इसी प्रकार बड़े-बड़े पाप जीवन में हो गये हो, तो भी प्रायश्चित-आलोचना के प्रताप से जीव धवल हंस के पंख की तरह निर्मल बन सकता है| परंतु जो एक छोटा-सा भी पाप मन में छुपा दिया, तो सत्यानाश…. भवोभव बिगड़ जाते हैं| इसलिये जाओ गीतार्थ गुरुभगवंतो के चरणो में… शरम, अभिमान आदि को दूर कर काली स्याही जैसी जीवन की काली किताब को गुरु के चरणो में सौंप दो| एक भी पाप मन में न रह जाये… तन का पाप… मन का पाप… वचन का पाप…, सभी प्रायश्चित के प्रताप से जलकर खाक हो जायेंगे| अटम बॉम्ब से भी ज्यादा ताकत है इस प्रायश्चित में !!
यदि पाप करते ही रहे और आलोचना-प्रायश्चित से शुद्ध न हुए हों, तो आ जाईये वन्स मोर…. नरकगति में…. जहॉं परमाधामी नारक जीव को भयंकर दुःख देते हैं…. शरीर के टुकड़े-टुकड़े करता हुआ असिपत्र वन, गरमागरम जस्ता…. हड्डी-मॉंस-खून से भरी हुई वैतरणी नदी आदि की वेदना, जो छक्के छुड़ा दे, ऐसी परिस्थिति… पल पल मृत्यु को चाहे… तो भी मृत्यु जहॉं कोसों दूर रहती है| अथवा तो जाईये पशुयोनि में सुअर बन कर आंध्र जैसे प्रदेशो में जीते जी जलकर मरना पडता है| महिष बनकर भरुच के ऊँचे ढलानों पर पानी उठाकर चढ़ना पड़ता है| ओह ! तब याद आयेगा कि प्रायश्चित ले लिया होता तो…!
very touching