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तुम वही पाओगे…जो तुम बोओगे

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Real education is the key to success

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जियो और जीने दो

जियो और जीने दो

पाणिवहं घोरं
अपने सौंदर्य के साधनों के लिये मूक प्राणियों का उपयोग हो रहा हैं|

हमे इस जीव हिंसा के पाप से बचना होगा| Continue reading “जियो और जीने दो” »

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सम्मान की इच्छा मत करो

सम्मान की इच्छा मत करो

सम्माननं परां हानिं योगर्द्धेः कुरुते यतः
उत्तम पुरुष विकारों से विमुक्त होता हुआ पूजा एवं यश का इच्छुक न बनकर जीवन व्यतीत करता है| तुम्हें कोई भाग्यवान कहे तो फूलो मत… तुम्हें कोई बुद्धिमान या धनवान कहे तो खिलो मत… क्योंकि उनका बुद्धि का तराजू पत्थर तोलने का है… हीरा तोलने का नहीं| ध्वनियों में सबसे मधुर है प्रशंसा की ध्वनि| अतः इस ध्वनि से बचते रहो… कम से कम धर्म के अनुष्ठान तो कीर्ति, यश और प्रशंसा से दूर रहकर ही करें|

करनी ऐसी कीजिए जिसे न जाने कोय|
जैसे मेहंदी पात में बैठी रंग छुपाय॥

काम करना आपका काम है…..बस सिर्फ काम करें…..नाम नहीं चाहें…..धर्म करना आपकी आत्मा का स्वभाव है, तो सम्मान की इच्छा मत करो|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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शिक्षा का प्रारम्भ

शिक्षा का प्रारम्भ

एवं खु तप्पालणे वि धम्मो
एक दिन एक महिला एक वरिष्ठ ज्ञानी व्यक्ति के पास गई और पूछा, ‘‘बाबा, कृपा करके मुझे यह बताइए कि मुझे अपने नन्हें-मुन्ने बेटे की शिक्षा कब प्रारम्भ करनी चाहिए?’’ Continue reading “शिक्षा का प्रारम्भ” »

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नि: स्वार्थ सेवा सच्चा दान है

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चमत्कारी भोजन

चमत्कारी भोजन

आरोग्यरहस्यम्
एक दिन एक राजा आँधी और तूफान में फँस गया| उसने एक झोंपड़े में शरण ली| उसने देखा, बच्चे जमीन पर बैठे हुए खाना खा रहे हैं| खाने में सिर्फ पतली खिचड़ी ही थी, पर बच्चे काफी स्वस्थ दिख रहे थे| Continue reading “चमत्कारी भोजन” »

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अनित्यता

अनित्यता

अनित्यं हि जगत् सर्वम्

पद, पैसा और प्रतिष्ठा यदि एक साथ मिल जाए तो अधिक मत इतराना वर्ना जब ये खो जाएँगे तब तड़पना पड़ेगा| रूप, बल और जवानी की अवस्था में बहुत ज्यादा खुश मत होना वर्ना बुढ़ापे में रोना पड़ेगा| Continue reading “अनित्यता” »

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पहेली

पहेली
विप्र वेश में कोई यक्ष एक राजसभा में जा पहुँचा वहॉं उसने सबके सामने एक पहेली रखी – पॉंच मी पॉंच सी, पॉंच मी न सी

फिर वह बोला कि मैं परसों फिर यहॉं आऊँगा| यदि तब तक किसी ने इस पहेली का उत्तर नहीं दिया तो समझ लिया जायेगा कि इस राज्य में कोई पण्डित है ही नहीं|

राजा ने राजपण्डित से कहा कि यदि आप कल शाम तक इस पहेली का उत्तर नहीं खोज पाये, तो परसों प्रातःकाल ही आपका वध कर दिया जायेगा| यह पूरे राज्य की प्रतिष्ठा का सवाल है| बेचारा राजपण्डित निराश होकर किसी जंगल में जाकर एक पेड़ के नीचे बैठ गया और विचार करने लगा| उसी पेड़ पर वही यक्ष अपनी प्रेयसी के साथ बैठा बातें कर रहा था|

प्रिये ! परसों तुम्हें अवश्य ही राजपण्डित का कलेजा खाने को मिल जायेगा| मैंने पहेली ही ऐसी पूछी है कि उसका उत्तर उसे सूझेगा ही नहीं और फिर परसों उसका निश्‍चित ही वध कर दिया जायेगा|

आपकी पहेली का अर्थ क्या है ? प्रेयसी ने पूछा|

पहेली पन्द्रह तिथियों पर आधारित है| पंचमी, सप्तमी, अष्टमी, नवमी और दशमी ये पॉंच मी वाली तिथियॉं हैं| एकादशी, द्वादशी, त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णासी ये पॉंच सी वाली तिथियॉं हैं और एकम, दूज, तीज, चौथ और छठ इन पॉंचों में न मी है और न ही सी|

राजपण्डित ने यह सब सुन लिया| फिर वह घर चला गया| दूसरे दिन राजसभा में अर्थ बताकर उसने अपने प्राणों की रक्षा की|

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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आंखें जहां भी तुम देखो

आंखें जहां भी तुम देखो
आंखें जहां भी तुम देखो ऐसी हो जाएं शुद्ध कि वहीं परमात्मा दिखाई पड़े

इंद्रियां भी उसी के लिए द्वार बन सकती हैं| और हम इंद्रिय प्रार्थना में संलग्न हो सकती है| और उसी को हम कलाकार कहेंगे जो सारी इंद्रियों को परमात्मा में संलग्न कर दे; जो आत्मा से ही न पुकारे, देह से भी पुकारे| Continue reading “आंखें जहां भी तुम देखो” »

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