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जीवन का निर्माण

जीवन का निर्माण
जन्म का प्रारम्भ तो सभी का एक जैसा होता है लेकिन अन्त एक जैसा नहीं होता| सुबह तो सभी की एक सी है पर शाम भिन्न-भिन्न है| Continue reading “जीवन का निर्माण” »

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अपरिग्रह

अपरिग्रह

मुच्छा परिग्गहो वुत्तो
किसी भी वस्तु के प्रति मूर्च्छा का भाव ही परिग्रह है| मूर्च्छा परिग्रह है| परिग्रह का अर्थ है संग्रह और अपरिग्रह का अर्थ है त्याग| किसी वस्तु का अनावश्यक संग्रह न करके उसका जन-कल्याण हेतु वितरण कर देना| परिग्रह मनुष्य को अहंकार एवं मोहरूपी अँधेरे के अथाह भंवर में डुबो देने वाला होता है| धन की परिग्रहवृत्ति काम, क्रोध, मान और लोभ की उद्भाविका है| Continue reading “अपरिग्रह” »

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सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है

सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है
अगर तुम्हारा पात्र भीतर से बिलकुल शुद्ध है, निर्मल है, निर्दोष है, तो जहर भी तुम्हारे पात्र में जाकर निर्मल और निर्दोष हो जाएगा| Continue reading “सब कुछ तुम्हारी पात्रता पर निर्भर है” »

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चहक एक चिड़िया की

चहक एक चिड़िया की
एक पेड़ पर चिड़िया अपनी मस्ती में चहक रही थी| उस पेड़ के नीचे एक भक्त विश्राम कर रहा था| चिड़िया की चहक सुनकर भक्त बोला, ‘‘अहा ! चिड़िया भी भगवान को याद कर रही है|’’ Continue reading “चहक एक चिड़िया की” »

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नाम कर्म

नाम कर्म
किसी को रुपवान शरीर होता है,
किसी को कुरुप शरीर होता हैं, Continue reading “नाम कर्म” »

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जीवन को थोड़े रंग दो

जीवन को थोड़े रंग दो
जीवन को वैसा ही मत छोड़ो जैसा तुने पाया था| जीवन को कुछ सुंदर करो| उठाओ तूलिका, जीवन को थोड़े रंग दो| उठाओ वीणा, जीवन को थोड़े स्वर दो| पैरों में बांधों घूंघर, जीवन को थोड़ा नृत्य दो| प्रे दो, प्रीति दो! तोड़ो उदासी| जीवन को थोड़ा उत्सव से भरो| Continue reading “जीवन को थोड़े रंग दो” »

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प्रार्थना में मॉंग न हो

प्रार्थना में मॉंग न हो
प्रार्थना का मार्ग समर्पण का मार्ग है| प्रार्थना याचना नहीं अर्पणा है| जिससे हृदय के द्वार स्वयमेव खुलते हैं| सूरज का उदय हो और फूल न खिलें तो समझना कि वह फूल नहीं पत्थर है… परमात्मा की प्रार्थना हो और हमारा हृदय न खिले तो जानना चाहिए वह हृदय नहीं पत्थर है| प्रार्थना में जब मॉंग आती है तो भक्त उपासक न रहकर याचक बन जाता है| प्रार्थना एक निष्काम कर्म है| जब भक्त तन्मय होकर प्रार्थना में लग जाता है तो उसकी सारी इच्छाएं स्वतः समाप्त हो जाती है| एक भक्त की सच्ची प्रार्थना इस प्रकार होनी चाहिए…|

करो रक्षा विपत्ति से न ऐसी प्रार्थना मेरी|
विपत्ति से भय नहीं खाऊँ प्रभु ये प्रार्थना मेरी॥
मिले दुःख ताप से शान्ति न ऐसी प्रार्थना मेरी|
सभी दुःखों पर विजय पाऊँ, प्रभु ये प्रार्थना मेरी॥

यह आलेख इस पुस्तक से लिया गया है
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सम्बन्धों को संभाले

सम्बन्धों को संभाले

पोष्यपोषकः
चाहे ज़िन्दगी कितनी छोटी क्यों न हो परन्तु हम अकेले नहीं जी सकते| हम सम्बन्धों के धागों को बुन लेते हैं| Continue reading “सम्बन्धों को संभाले” »

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Water is precious

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Stop exploitation of all kind

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