निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है कि दुःख कामासक्ति से उत्प होता है
कामासक्ति मनुष्य की मानसिक शान्ति का अपहरण करने में बड़ी ही कुशल होती है| वह व्यक्ति को विषयोंकी सामग्री एकत्र करने के लिए प्रेरित करती है| प्राणियों के मस्तिष्क में वह ऐसा भ्रम पैदा कर देती है कि जिससे वे वास्तविक स्थायी आध्यात्मिक सुख की उपेक्षा करके बाहर से प्राप्त होनेवाले क्षणिक सुख की ओर आकृष्ट हो जाते हैं| इस प्रकार जीवनभर परिश्रम करके भी – दौड़-धूप करके भी जीवन के सच्चे आनन्द से वञ्चित रहते हैं|
ज्ञानी ऐसे व्यक्तियों को सावधान करते हुए कहते हैं कि जहॉं कामनाएँ हैं – वासनाएँ हैं – लालसाएँ हैं – इच्छाएँ है; वहॉं चिन्ताएँ निवास करती हैं और जहॉं भी चिन्ताएँ हैं, वहॉं दुःखानुभूति अवश्य रहती है| अतःदुःखों से बचने के लिए कामनाओं का त्याग कीजिये – कामासक्ति छोड़िये|
- उत्तराध्ययन सूत्र 32/16
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