सकम्मुणा किच्चइ पावकारी
पाप करनेवाला अपने ही कर्मों से पीड़ित होता है
झूठ बोलनेवाला भी डरता रहता है कि कभी मेरी बात खुल न जाये, अन्यथा कोई कभी मुझ पर विश्वास न करेगा| छल-कपट करनेवाला या धोखा देनेवाला भी पोल खुलने के भय से कॉंपता रहता है|
क्रोध करनेवाला अपने हाथों के, लातों के या वचनों के प्रहारों से जब दूसरों को पीड़ित करता है, तब दूसरे भी कहॉं मिट्टी के माधो बने रहते हैं ? वे भी बदले में प्रहार करके क्रोधी पर क्रोध करते हैं| इस प्रकार दोनों पक्षों का वैर बढ़ता रहता है और सबको अशान्त बना देता है| क्रोध स्वयं भी कोई कम वेदना नहीं है| हम देखते हैं कि क्रोधी का पूरा शरीर वेदना के मारे कॉंपने लगता है|
इस प्रकार पापी स्वयं ही पीड़ित होता है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 4/3
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