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पापी की पीड़ा

पापी की पीड़ा

सकम्मुणा किच्चइ पावकारी

पाप करनेवाला अपने ही कर्मों से पीड़ित होता है

चोरी करनेवाला चारों ओर से सतर्क रहता है| वह फूँक-फूँक कर कदम रखता है| डरता रहता है कि कहीं कोई उसे देख न ले – रँगे हाथों पकड़ न ले| इस प्रकार अन्त तक वह भयकी वेदना से पीड़ित होता रहता है| चोरी पकड़ी जाने पर तो उसे जेल या शारीरिक दण्ड भी भोगने पड़ते हैं|

झूठ बोलनेवाला भी डरता रहता है कि कभी मेरी बात खुल न जाये, अन्यथा कोई कभी मुझ पर विश्‍वास न करेगा| छल-कपट करनेवाला या धोखा देनेवाला भी पोल खुलने के भय से कॉंपता रहता है|

क्रोध करनेवाला अपने हाथों के, लातों के या वचनों के प्रहारों से जब दूसरों को पीड़ित करता है, तब दूसरे भी कहॉं मिट्टी के माधो बने रहते हैं ? वे भी बदले में प्रहार करके क्रोधी पर क्रोध करते हैं| इस प्रकार दोनों पक्षों का वैर बढ़ता रहता है और सबको अशान्त बना देता है| क्रोध स्वयं भी कोई कम वेदना नहीं है| हम देखते हैं कि क्रोधी का पूरा शरीर वेदना के मारे कॉंपने लगता है|

इस प्रकार पापी स्वयं ही पीड़ित होता है|

- उत्तराध्ययन सूत्र 4/3

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