सव्वे कामा दुहावहा
सभी काम दुःखप्रद होते हैं
किसी भी वस्तु की कामना मन को अशान्त बनाने में समर्थ होती है| जब तक कामना शान्त नहीं होती, तब तक भीतर ही भीतर वह आग की तरह जल कर शान्ति, संतोष एवं सुख को जला कर भस्म करती रहती है|
पॉंचों इन्द्रियों के लिए अनुकूल विषय-सामग्री पाने की कामना होती है और अपनी प्रशंसा सुनने की भी |
कामनापूर्ति से तृप्ति भी होती है; परन्तु वह स्थायी नहीं होती| कामना की पूर्ति के प्रयास में जितना श्रम और समय खर्च होता है, उसके अनुपात में उससे अनुभव में आने वाला सुख बहुत ही कम होता है|
ज्ञानियों ने अपने जीवन के अनुभवों का सार बताते हुए यह घोषणा की है कि इस विश्व में सब प्रकार के काम दुःखप्रदायक हैं – त्याज्य हैं|
- उत्तराध्ययन सूत्र 13/16
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