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सौन्दर्य का नाश

सौन्दर्य का नाश

वण्णं जरा हरइ नरस्स रायं

हे राजन्! बुढ़ापा मनुष्य के सौन्दर्य को नष्ट कर देता है

शैशव अवस्था में व्यक्ति कितना सुन्दर दिखाई देता है? न दाढ़ी, न मूँछ, न चिन्ता, न शोक, न क्रूरता, न भय, न कपट, न अहंकार! सीधा और सरल व्यवहार! हँसमुख चेहरा और मांसल देह! क्षणभर में रोना और क्षणभर में हँसना|

फिर बाल्यावस्था और किशोरावस्था को पार करके जब यौवन आता है, तब शारीरिक सौन्दर्य का क्या कहना ? वह अपनी चरम सीमा पर होता है! बातचीत में शिष्टता, वाणी में गम्भीरता, व्यवहारमें नम्रता, चतुराई और विवेक! सद्गुणों की साधना के द्वारा जीवन को उन्नत बनाने का प्रयास! परोपकार के लिए तत्परता! पुष्ट, सुगठित और प्रभावशाली मांसल देह! प्रत्येक चेष्टा में आकर्षण-प्रत्येक कार्य में उल्लास एवं उत्साह का मिश्रण|

फिर ज्यों-ज्यों अवस्था ढलती जाती है, शरीर शिथिल होता जाता है – बाल सफेद, शरीर में निर्बलता, चेहरे पर झुरिंयॉं बात-बात पर क्रोध एवं झुंझलाहट, विविध रोगों का आक्रमण, शोक और चिन्ताएँ! इस प्रकार बुढ़ापा मनुष्य के सौंदर्य को नष्ट कर देता है|

- उत्तराध्ययन सूत्र 13/26

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