post icon

ममता का बन्धन

ममता का बन्धन

ममत्तं छिंदए ताए, महानागोव्व कंचुयं

आत्मसाधक ममत्व के बन्धन को तोड़ फेंके; जैसे महानाग कञ्चुक को उतार देता है

सॉंपों के शरीर पर एक झिल्लीदार पतला चमड़ा होता है, जो हर साल गिर जाता है| उसे संस्कृत में कंचुक और हिन्दी में केंचुली कहते हैं| अजगर जिस प्रकार वर्षभर तक एक केंचुली की खोज में रहकर भी उसके प्रति आसक्ति नहीं रखता और ज्यों ही वर्ष समाप्त होता है, वह तत्काल अपनी केंचुली छोड़ कर अन्यत्र चला जाता है|

उसी प्रकार आत्मकल्याण का साधक भी कुटुम्ब, मकान बहुमूल्य वस्त्रालंकार आदि की ममता को छोड़कर अन्यत्र चला जाता है – प्रव्रजित हो जाता है|

प्रव्रजितावस्था में भी अनेक वस्तुओं से उसका सम्पर्क आता है| सम्पर्क में आनेवाली वस्तुओं से उसे राग हो जाता है – ममता हो जाती है| सादे वस्त्रों और भिक्षा के लिए बने हुए साधारण काष्ठ के पात्रों में भी उसकी ममता दिखाई देती है| इतना ही नहीं, व्यक्तियों के प्रति भी उसके हृदय में ममता उत्पन्न हो जाती है| सम्पर्क में रहनेवाले गुरुदेव हो या शिष्यगण – सबको वह अपना समझने लगता है| ममता का यह बन्धन साधना में बाधक होने से त्याज्य है|

- उत्तराध्ययन सूत्र 16/87

Did you like it? Share the knowledge:

Advertisement

1 Comment

Leave a comment
  1. harshad shah
    अप्रैल 3, 2018 #

    superb website for everyone who really want to understand jainism.

Leave a Reply

Connect with Facebook

OR