सज्झाएणं नाणावरणिज्जं कम्मं खवेइ
स्वाध्याय से ज्ञानावरणीय कर्म का क्षय होता है
स्वाध्याय का विशिष्ट अर्थ है – आत्मचिन्तन| ‘स्व’ (आत्मा) का अध्ययन ही स्वाध्याय है|
आत्मा का स्वभाव क्या है? स्वरूप क्या है? कर्म क्या है? कर्मों का स्वभाव क्या है? आत्मा के साथ कर्मों का संयोग कब हुआ? क्यों हुआ? क्या यह संयोग टूट भी सकता है? यदि टूट सकता है तो कैसे? क्षणिक सुख और शाश्वतसुख में क्या अन्तर है? दोनों सुखों में से किसी एक सुख को चुनने के लिए कहा जाये; तो हम किसे चुनेंगे? शाश्वत सुख का स्रोत क्या है? हमारे जीवन का प्रयोजन क्या है? आदि प्रश्नों पर चिन्तन करना ही स्वाध्याय है, जिससे ज्ञानावरणीय कर्म क्षीण होते हैं और जीव सर्वज्ञ बनता है|
- उत्तराध्ययन सूत्र 26/18
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renu