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समझ लीजिये

समझ लीजिये

संबुज्झह, किं न बुज्झह?
संबोही खलु पेच्च दुल्लहा

समझो! क्यों नहीं समझते मरने पर संबोध निश्‍चित रूप से दुर्लभ है

अपने अपने शुभाशुभ कर्मों का भोग करते हुए प्राणी इस संसार में चौरासी लाख योनियों में जन्म लेते और मरते रहते हैं| मनुष्य मर कर मनुष्य के रूप में ही जन्म लेता है – ऐसा निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता| उसके कर्मों के अनुसार उसकी योनि निश्चित होती है और उन कर्मोंका फल भोगने के लिए उसे उसी योनि में अनिच्छापूर्वक पैदा होना पड़ता है|

एक मनुष्य मर कर कुत्ता, बकरी, हाथी, सॉंप, मोर, तोता, कबूतर, कौआ अथवा चींटी कुछ भी बन सकता है| जैसा मस्तिष्क मानवशरीर के साथ उसे मिलता है, वैसा पशु पक्षियों की योनि में उसे नहीं मिल सकता!

अतः ज्ञानी कहते हैं, इस दुर्लभ मानवजीवन में धर्म का रहस्य समझने की शक्ति मिली है; तो क्यों नहीं समझ लेते? समझ लीजिए|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/2/1/1

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1 Comment

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  1. Your Name
    अक्तू॰ 23, 2020 #

    Sir, there is a typo in the meaning. By mistake it has become alter instead of after .

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