संबुज्झह, किं न बुज्झह?
संबोही खलु पेच्च दुल्लहा
संबोही खलु पेच्च दुल्लहा
समझो! क्यों नहीं समझते मरने पर संबोध निश्चित रूप से दुर्लभ है
एक मनुष्य मर कर कुत्ता, बकरी, हाथी, सॉंप, मोर, तोता, कबूतर, कौआ अथवा चींटी कुछ भी बन सकता है| जैसा मस्तिष्क मानवशरीर के साथ उसे मिलता है, वैसा पशु पक्षियों की योनि में उसे नहीं मिल सकता!
अतः ज्ञानी कहते हैं, इस दुर्लभ मानवजीवन में धर्म का रहस्य समझने की शक्ति मिली है; तो क्यों नहीं समझ लेते? समझ लीजिए|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/2/1/1
Sir, there is a typo in the meaning. By mistake it has become alter instead of after .