महयं पलिगोव जाणिया, जा वि य वंदणपूयणा इहं
संसार में जो वन्दन पूजन (सन्मान) है, साधक उसे महान दलदल समझे
आदर-सत्कार से प्रसन्न होनेवाले व्यक्ति को धूर्त्त लोग उल्लू बनाते हैं| ऐसा व्यक्ति चापलूसों से घिरा रहता है और उनकी इच्छानुसार नाच नाचा करता है|
त्यागी साधक को तो इस ओर से सदा सावधान रहना चाहिये| उसके सारे कार्य आत्मकल्याण की दृष्टि से हों, वन्दन-पूजा की प्राप्ति उसका उद्देश्य न हो | ज्ञानी कहते हैं कि कीचड़ में फँसा हुआ व्यक्ति जिस प्रकार अपने लक्ष्य को प्राप्त नहीं कर सकता, उसी प्रकार वंदन पूजा (आदर-सत्कार, प्रशंसा) पाने के चक्कर में फँसा हुआ व्यक्ति भी अपना लक्ष्य नहीं पा सकता|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/2/2/11
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