तुमं तुमं ति अमणुं, सव्वसो तं न वत्तए
तू, तुम जैसे अमनोहर शब्द कभी नहीं बोलें
जहॉं आप शब्द का प्रयोग होना चाहिये, वहॉं ‘तू’ या ‘तुम’ का प्रयोग अनुचित या अमनोज्ञ लगता है| दूसरों को जब ‘तू’ या ‘तुम’ कहा जाता है, तब सुनने वालों को बुरा लगता है और कहने वाले को वे घमण्डी समझ लेते हैं| घमण्डी व्यक्ति की बातें लोग रुचिपूर्वक नहीं सुन सकते|
सचमुच ये शब्द अपने को मर्यादा से या उचित से अधिक महत्वपूर्ण समझने और दूसरों को अपने से हीन या तुच्छ समझने की मनोवृत्ति के द्योतक हैं|
दूसरों को तुच्छ समझना स्वयं तुच्छता है, जो सत्पुरूषों में नहीं पाई जा सकती | वे दूसरों को भी सत्परामर्श देते हुए कहते हैं – ‘‘तू, तुम’’ जैसे अमनोज्ञ शब्द कभी न बोलें|
- सूत्रकृतांग सूत्र 1/6/27
वाणी ऐसी बोलिए मनका आपा खोल,
ओरनको शीतल करे, आप ही शीतल होय.