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विषलिप्त कॉंटा

विषलिप्त कॉंटा

तम्हा उ वज्जए इत्थी,
विसलित्तं व कंटगं नच्चा

विषलिप्त कॉंटे की तरह जानकर ब्रह्मचारी स्त्री का त्याग करे

स्त्रियों के प्रति – ऐसा लगता है कि प्रकृति ने कुछ पक्षपात किया है| पुरुषों की अपेक्षा उनका स्वर स्वाभाविक रूप से अधिक मधुर होता है| कोयल का पंचम स्वर उनके कण्ठ में बिठा दिया गया है|

श्रृंगार, हावभाव, चेष्टाएँ, सौन्दर्य, दाढ़ी-मूँछ का अभाव आदि अनेक बातें हैं, जो पुरुषों का मन आकर्षित करनेवाली हैं| पुरुष साधकों के सामने यही सबसे बड़ी कठिनाई है| जो स्त्रियों की ओर आकृष्ट हो जाता है – वह साधना नहीं कर सकता- अपने कर्त्तव्य से वह पीछे हट जाता है – पथ भ्रष्ट हो जाता है – समाज में उसका सन्मान नहीं रहता-प्राप्त सुयश भी सर्वथा लुप्त हो जाता है|

स्त्रियों के आकर्षण से बचने के लिए ज्ञानियों ने यह सुझाव दिया है कि ब्रह्मचारी साधक उन्हें विषलिप्त कॉंटे के समान समझें और उनका त्याग करें|

- सूत्रकृतांग सूत्र 1/4/1/11

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