बुद्धिमान को कभी उपहास नहीं करना चाहिये
हम देखते हैं कि हँसी-हँसी में दो घनिष्ट मित्र कट्टर शत्रु बन जाते हैं, एक दूसरे की हत्या करने को तैयार हो जाते हैं| क्षणभर पहले जहॉं एक दूसरे के हित की भावना हृदय में हिलारें ले रही थी, वहीं एक-दूसरे के प्रति दुर्भावना, द्वेष और ईर्ष्या का साम्राज्य छा जाता है| यह सब किसका दुष्परिणाम है? हँसी का ही!
जो प्राज्ञ पुरुष हैं – बुद्धिमान साधक हैं, वे दूरदर्शी होते हैं; इसलिए कुछ भी बोलने या कहने से पहले उसका परिणाम सोच लेते हैं| दुष्परिणाम की सम्भावना होने पर शब्द मुँह से बाहर नहीं निकालते| वे जानते हैं कि उपहास का परिणाम अच्छा नहीं होता; इसलिए वे कभी किसी की हँसी नहीं उड़ाते| शास्त्रकारों ने भी ठीक ही कहा है कि बुद्धिमान साधक अपने जीवन में कभी किसी अन्य व्यक्ति का उपहास न करे |
- सूत्रकृतांग सूत्र
ઘોડો ભાંગ્યો ઠેકતા, મન ભાંગ્યું કવેણ,
મોટી ભાંગ્યું વીન્ઘતા એને નહિ સાંધો કે રેણ.
एक ने पूछा कि “जीवन कैसे अच्छा हो?”
संत : “एक तो मधुर बोलिए, दूसरा कि किसी के अवगुण प्रगट ना करे और तीसरा अपने अवगुण को दूर करके सदगुण को अपनाया करे।”