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चार श्रावक

चार श्रावक

चत्तारि समणोवासगा-अद्दागसमाणे,
पडागसमाणे, ठाणुसमाणे, खरकंटगसमाणे

श्रमणोपासक चार प्रकार के होते हैं – दर्पण के समान (स्वच्छ हृदय वाले), पताका के समान (चञ्चल हृदय वाले), स्थाणु के समान (दुराग्रही) और तीक्ष्ण कण्टक के समान (कटुभाषी)

श्रमणों के प्रति श्रद्धा रखने वाले – उनकी उपासना करने वाले श्रमणोपासक या श्रावक कहलाते हैं|

कुछ श्रावक निर्मल हृदय वाले होते हैं| जैसे स्वच्छ दर्पण में अपना चेहरा प्रतिबिम्बित होता है|

कुछ श्रावक पताका की तरह चंचल होते हैं| उनकी श्रद्धा स्थिर नहीं होती| वे कभी कोई एक बात स्वीकार करते हैं; कभी कोई अन्य बात, जो पहली बात से विरुद्ध तक हो सकती है|

कुछ श्रावक स्थाणु (ठूँठ) की तरह स्थिर विचारों वाले होते हैं| किसी ने कभी गधे की पूँछ पकड़ा दी; तो चाहे कोई कितना भी समझाये, वे उसे छोड़ने को तैयार नहीं होते|

कुछ श्रावक बड़े कटुभाषी होते हैं| उनके वचन तीखे कॉंटे की तरह चुभने वाले होते हैं| दूसरों को ताना मारने में वे दक्ष होते हैं| इस तरह कुल चार प्रकार होते हैं श्रावकों के|

- स्थानांग सूत्र 4/3

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