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वाणी का आदर्श

वाणी का आदर्श

सच्चं च हियं च मियं च गाहणं च

सत्य, हित, मित और ग्राह्य वचन बोलें

जो मनुष्य गूँगे नहीं है, उन सबको व्यवहार के लिए, दूसरों को अपने मन की बात समझाने के लिए, दूसरों के मन की बात जानने के लिए कुछ-न-कुछ प्रतिदिन बोलना ही पड़ता है|

सज्जनों की बोली या वाणी में जो चार गुण होते हैं, उनका उल्लेख इस सूक्ति में किया गया है|

पहला गुण है सच्चाई| हम जो कुछ बोलें, वह यथार्थ हो – वास्तविक हो, कल्पित नहीं – असत्य नहीं.

दूसरा गुण है – हितकरता| वाणी ऐसी हो, जिससे दूसरों की भलाई हो, बुराई नहीं|

तीसरा गुण है – परिमितता| हम वाणी में अनावश्यक शब्दों का प्रयोग करके उसे लम्बी न बनायें| अपने विचार कमसे कम शब्दों में अभिव्यक्त करने का प्रयास करें|

और अन्तिम गुण है – ग्राह्यता| हमारी वाणी इतनी सरल और सुगम हो कि सुननेवाले तत्काल उसका आशय समझ लें-ग्रहण कर लें|

इस प्रकार ज्ञानियों ने सज्जनों की हित, मित, ग्राह्य एवं सच्ची बोली का उल्लेख करके जनसाधारण के लिए वाणी का आदर्श प्रस्तुत किया है|

- प्रश्‍नव्याकरण 2/2

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