अणुविय गेण्हियव्वं
अनुज्ञा लेकर (ही कोई वस्तु) ग्रहण करनी चाहिये
परन्तु कुछ लोगों की नीयत ही खराब होती है| वे विनोद के बहाने वस्तु छिपा लेते हैं और सोचते हैं – यदि पता चल गया तो कह देंगे – ‘‘विनोद के लिए वस्तु छिपाई गई थी’’ और पता नहीं चला तो उस वस्तु के मालिक ही बन बैठेंगे| ऐसे व्यक्ति वास्तव में चोर ही हैं|
यह तो गृहस्थों की बात हुई| जहॉं तक साधु-साध्वियों का प्रश्न है, वे तो सर्वस्व त्यागी होते हैं – प्रव्रजित होने के क्षण से ही उनकी अपनी कोई वस्तु नहीं रह जाती; अर्थात् किसी भी वस्तु पर उनकी ममता नहीं रह जाती; इसलिए उन्हें तो प्रत्येक वस्तु का उपयोग करने से पहले उसके स्वामी (मालिक) से अनुज्ञा लेनी ही चाहिये| कहा गया है कि साधारण घास का तिनका भी क्यों न हो, पूछकर लीजिये|
- प्रश्नव्याकरण 2/3
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