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पूछ कर लीजिये

पूछ कर लीजिये

अणुविय गेण्हियव्वं

अनुज्ञा लेकर (ही कोई वस्तु) ग्रहण करनी चाहिये

बिना पूछे किसी की कोई वस्तु उठा लेना और उसका उपयोग कर लेना चोरी का ही एक प्रकार है| कुछ लोग विनोद के लिए मित्र की वस्तु छिपा देते हैं और जब वह उसे परेशान होकर ढूँढने लगता है, तब हँसते हैं और वस्तु लौटा देते हैं|

परन्तु कुछ लोगों की नीयत ही खराब होती है| वे विनोद के बहाने वस्तु छिपा लेते हैं और सोचते हैं – यदि पता चल गया तो कह देंगे – ‘‘विनोद के लिए वस्तु छिपाई गई थी’’ और पता नहीं चला तो उस वस्तु के मालिक ही बन बैठेंगे| ऐसे व्यक्ति वास्तव में चोर ही हैं|

यह तो गृहस्थों की बात हुई| जहॉं तक साधु-साध्वियों का प्रश्‍न है, वे तो सर्वस्व त्यागी होते हैं – प्रव्रजित होने के क्षण से ही उनकी अपनी कोई वस्तु नहीं रह जाती; अर्थात् किसी भी वस्तु पर उनकी ममता नहीं रह जाती; इसलिए उन्हें तो प्रत्येक वस्तु का उपयोग करने से पहले उसके स्वामी (मालिक) से अनुज्ञा लेनी ही चाहिये| कहा गया है कि साधारण घास का तिनका भी क्यों न हो, पूछकर लीजिये|

- प्रश्‍नव्याकरण 2/3

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