post icon

बिना पूछे न बोलें

बिना पूछे न बोलें

अपुच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अन्तरा

बिना पूछे किसी बोलने वाले के बीच में नहीं बोलना चाहिये

सभ्यता कहती है कि यदि कोई आदमी कुछ बोल रहा हो तो जब तक उसका कथन पूर्ण नहीं हो जाता, तब तक सुननेवाले को मौन रहना चाहिये| वादविवाद अथवा शास्त्रार्थ में तो इस नियम का और भी अधिक सावधानी के साथ पालन करने का ध्यान रखना पड़ता है|

बीच में बोलने से अर्थात् बात काटने से बोलने वाले की पूरी बात समझ में नहीं आ सकती और अधूरी सुनी हुई बात का उत्तर देने से वह भी अधूरा ही रहता है – इसलिए सन्तोषप्रद नहीं होता|

फिर बोलनेवाले के बीच में बोल उठने से बोलनेवाले के हृदय में क्षोभ पैदा हो जाता है और वह भी ऐसा ही करता है| इस प्रकार जब दोनों पक्ष क्षुब्ध हो जाते हैं, तब मुख्य विषय की चर्चा छोड़कर वे परस्पर व्यक्तिगत आक्षेप करने लगते हैं और झगड़ने लगते हैं| इस दुष्परिणाम से बचने के लिए सभ्यता के नियम का पालन करना ही चाहिये|

बिना पूछे बोलना अभिमान का प्रतीक है| तो पूछने पर बोलना ज्ञान का| अतः हमें चाहिये कि कभी हम बिना पूछे न बोलें|

- दशवैकालिक सूत्र 8/47

Did you like it? Share the knowledge:

Advertisement

No comments yet.

Leave a comment

Leave a Reply

Connect with Facebook

OR