अपुच्छिओ न भासेज्जा, भासमाणस्स अन्तरा
बिना पूछे किसी बोलने वाले के बीच में नहीं बोलना चाहिये
बीच में बोलने से अर्थात् बात काटने से बोलने वाले की पूरी बात समझ में नहीं आ सकती और अधूरी सुनी हुई बात का उत्तर देने से वह भी अधूरा ही रहता है – इसलिए सन्तोषप्रद नहीं होता|
फिर बोलनेवाले के बीच में बोल उठने से बोलनेवाले के हृदय में क्षोभ पैदा हो जाता है और वह भी ऐसा ही करता है| इस प्रकार जब दोनों पक्ष क्षुब्ध हो जाते हैं, तब मुख्य विषय की चर्चा छोड़कर वे परस्पर व्यक्तिगत आक्षेप करने लगते हैं और झगड़ने लगते हैं| इस दुष्परिणाम से बचने के लिए सभ्यता के नियम का पालन करना ही चाहिये|
बिना पूछे बोलना अभिमान का प्रतीक है| तो पूछने पर बोलना ज्ञान का| अतः हमें चाहिये कि कभी हम बिना पूछे न बोलें|
- दशवैकालिक सूत्र 8/47
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