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सरलता और सन्तोष

सरलता और सन्तोष

माया मज्जवभावेणं,
लोहं सन्तोसओ जिणे

माया को ऋजुता से और लोभ को सन्तोष से जीतें

सरल और कुटिल परस्पर विलोम शब्द है| सरलता सम्प व्यक्ति पर लोग अखण्ड विश्‍वास करते हैं और कुटिलता सम्प व्यक्ति पर सर्वथा अविश्‍वास | जहॉं विश्‍वास है, वहीं प्रेम है और जहॉं प्रेम है, वहीं सुख है|

लोभ ऐसा डाकू है जो जीवन के सुख को लूट लेता है – वह ऐसी आग है, जो प्रेम को जलाकर राख कर देती है| हमें कुटिलता या माया पर विजय प्राप्त करनी है; तो ऋजुता को या सरलता को अपनाना होगा|

इसी प्रकार यदि हम लोभरूपी पिशाच का – जो हार्दिक शान्ति का अपहरण किया करता है – सत्यानाश करना चाहते हैं; तो हमें संतोष को अपने जीवन में प्रतिष्ठित करना होगा|

ज्ञानियों का कथन है कि जिस प्रकार माया पर ऋजुता का अंकुश लगाया जा सकता है; उसी प्रकार लोभ पर सन्तोष का अंकुश लगाना चाहिये| जीवन में दोनों का महत्वपूर्ण स्थान है – सरलता का भी और सन्तोष का भी|

- दशवैकालिक सूत्र 8/36

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