माया मज्जवभावेणं,
लोहं सन्तोसओ जिणे
लोहं सन्तोसओ जिणे
माया को ऋजुता से और लोभ को सन्तोष से जीतें
लोभ ऐसा डाकू है जो जीवन के सुख को लूट लेता है – वह ऐसी आग है, जो प्रेम को जलाकर राख कर देती है| हमें कुटिलता या माया पर विजय प्राप्त करनी है; तो ऋजुता को या सरलता को अपनाना होगा|
इसी प्रकार यदि हम लोभरूपी पिशाच का – जो हार्दिक शान्ति का अपहरण किया करता है – सत्यानाश करना चाहते हैं; तो हमें संतोष को अपने जीवन में प्रतिष्ठित करना होगा|
ज्ञानियों का कथन है कि जिस प्रकार माया पर ऋजुता का अंकुश लगाया जा सकता है; उसी प्रकार लोभ पर सन्तोष का अंकुश लगाना चाहिये| जीवन में दोनों का महत्वपूर्ण स्थान है – सरलता का भी और सन्तोष का भी|
- दशवैकालिक सूत्र 8/36
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